ग़ैरों से भी धोके खाए हैं अपनों से भी धोके खाए हैं
तब जा के कहीं इस दुनिया के अंदाज़ समझ में आए हैं
हम में न मोहब्बत की गर्मी हम में न शराफ़त की नर्मी
इंसान कहें क्यों सब हम को हम चलते फिरते साए हैं
उम्मीद ने फिर करवट ली है बदले हैं फ़ज़ा के फिर तेवर
अब देखिए क्या बरसाते हैं कुछ बादल घिर कर आए हैं
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