याद जो तेरी आई, ये फिर मचल गई,
इतने दिनों सो जो रुकी थी वो कलम फिर चल गई,
कोशीश भले ही कितनी करलूँ तुझे याद ना करने की,
ज़िद भले ही कितनी करलूँ तुझे भूल जाने की,
हर एक हवा के झोकें से एक खुशबू सी तेरी आती है,
साँझ में जो सूरज ढले एक लालिमा जो तुझसी छाती है,
फिर आता है एक ख्याल इज़हार इश्क़ का कर जाऊं,
सारे बंधन तोड़ हदों को पार कर जाऊं,