The illusion
सहर हो चली है, जिस्म मेरा अब भी टूट रहा है
कुछ है जो अब भी मुझे बिस्तर से बांध रखा है, कल रात तोह सोए भी जल्दी थे
यह नासाज़ हरकतें आखिर बयान क्या करना चाहती है मुझसे, इन गर्मी के दिनों में यह सरसराहट कैसे
आज मौसम भी बिल्कुल तुमसा हो गया है, पल भर में बदल गया हो जैसे
खिड़की पर शबनम की बूंदों से लग रहा है नाता कोई पुराना इनसे
कुछ कुछ याद आ रहा है मुझे, वह दिन ज़हन में ताज़ा हो गया है मुझे
फिर भी ऐतबार करने को मन् नहीं करता
कुछ ऐसा ही था मंज़र उस हिज्र की शाम का