मैं मुखर्जी नगर की सुब्ह हूँ,
तुम चांदनी चौक की शाम प्रिय।
मैं गरम चाय का प्रेमी हूँ,
तुम सर्द व्हिस्की का जाम प्रिये।।
इस दिल्ली में कितने दिल टूटे,
ये यूँ ही नहीं बदनाम प्रिये,
खैर"कुंवर छोटा सा शायर ठहरा,
तुम उँचे घर का नाम प्रिये।।
©Indra_Pratap_Singh
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