कविता "ना समझ" ******** थोड़ी अबुध थी,थोड़ी नासमज़ | हिंदी शायर

"कविता "ना समझ" ******** थोड़ी अबुध थी,थोड़ी नासमज़ थी; मेरी कथा थोड़ी हटके, सबसे अलग थी। कुछ लिखा था मेंने सोच समज़कर; कागज़ के टूकडों पर,थोड़ी बहस थी। अकसर देखा हैं मैंनें, प्यार करनेवालो को; आँखोकी शरारत उसकी,अकसर पहल थी। कब जाना ? कब माना? पता ही नहीं; जब दिलने की बहस, तब थोड़ी सहज़ थी। आँखों के अंतर पटने, कुछ दीलसे लिखा; कुछ नासमझ में भी, थोड़ी समझ थी । ~Harshbindu....✍️ ****************"

कविता "ना समझ" ******** थोड़ी अबुध थी,थोड़ी नासमज़ थी; मेरी कथा थोड़ी हटके, सबसे अलग थी। कुछ लिखा था मेंने सोच समज़कर; कागज़ के टूकडों पर,थोड़ी बहस थी। अकसर देखा हैं मैंनें, प्यार करनेवालो को; आँखोकी शरारत उसकी,अकसर पहल थी। कब जाना ? कब माना? पता ही नहीं; जब दिलने की बहस, तब थोड़ी सहज़ थी। आँखों के अंतर पटने, कुछ दीलसे लिखा; कुछ नासमझ में भी, थोड़ी समझ थी । ~Harshbindu....✍️ ****************

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