स्त्री के श्रृंगार
को अलंकारों से न सजाओ
स्त्री स्वयं अलंकारों में अलंकार है
शत्रु हो सामने तो लिए तलवार हाथ
मनु बनी वीरता की ललकार है
प्रेमी के लिए मन सुगंधित
रति सी सजी मधुर झंकार है
संतान सामने वात्सल्य से झलकित
अनुसूया सी देती देवो को भी दुलार है
स्त्री के श्रृंगार को क्या कोई बखान करें
स्त्री के अस्तित्व से ही उत्पन्न हर श्रृंगार है🌹❣️
©shubpreet
#Parchhai
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