पहली दृष्टि में प्रेम हुआ तुमसे, मैं हार बैठा | हिंदी कविता

"पहली दृष्टि में प्रेम हुआ तुमसे, मैं हार बैठा अपना तन-मन.. तुमसे ही दिन शुरु होती थी, रात होती तुमपे ही खतम.. विश्वास की अपेक्षा थी तुमसे, तोड़ दिये मेरे सारे स्वप्न.. प्राण जाने का भय नहीं मुझको, तुम्हें खोने से लगता था डर.. भयानक स्वप्न मेरा सत्य हो गया, मेरा ध्यान नहीं आया एक क्षण.. वचन था साथ निभाने का मेरा, सब नष्ट हो गया तुम्हारे कारण.. प्रेम की परिभाषा कैसी हैं, अब देखो मेरे नेत्र हैं नम.. हृदय की पीड़ा हृदय ही जानें, विरह से विचलित हुआ ये मन.. व्यथा क्या कहूँ अन्तर्मन की सखी, जी रहा हूँ तुम बिन ये नीरस जीवन.. ©Bhavesh Thakur Rudra"

 पहली  दृष्टि में प्रेम हुआ तुमसे,
मैं  हार  बैठा  अपना   तन-मन..

तुमसे ही दिन शुरु होती थी,
रात  होती  तुमपे  ही खतम..

विश्वास की अपेक्षा थी तुमसे,
तोड़   दिये   मेरे   सारे  स्वप्न..

प्राण जाने का भय नहीं मुझको,
तुम्हें  खोने  से   लगता  था  डर..

भयानक स्वप्न मेरा सत्य हो गया,
मेरा ध्यान नहीं  आया एक क्षण..

वचन था साथ निभाने का मेरा,
सब नष्ट हो गया तुम्हारे कारण..

प्रेम की  परिभाषा  कैसी  हैं,
अब  देखो  मेरे  नेत्र  हैं  नम..

हृदय  की पीड़ा हृदय ही जानें,
विरह से विचलित हुआ ये मन..

व्यथा  क्या कहूँ अन्तर्मन की सखी,
जी रहा हूँ तुम बिन ये नीरस जीवन..

©Bhavesh Thakur Rudra

पहली दृष्टि में प्रेम हुआ तुमसे, मैं हार बैठा अपना तन-मन.. तुमसे ही दिन शुरु होती थी, रात होती तुमपे ही खतम.. विश्वास की अपेक्षा थी तुमसे, तोड़ दिये मेरे सारे स्वप्न.. प्राण जाने का भय नहीं मुझको, तुम्हें खोने से लगता था डर.. भयानक स्वप्न मेरा सत्य हो गया, मेरा ध्यान नहीं आया एक क्षण.. वचन था साथ निभाने का मेरा, सब नष्ट हो गया तुम्हारे कारण.. प्रेम की परिभाषा कैसी हैं, अब देखो मेरे नेत्र हैं नम.. हृदय की पीड़ा हृदय ही जानें, विरह से विचलित हुआ ये मन.. व्यथा क्या कहूँ अन्तर्मन की सखी, जी रहा हूँ तुम बिन ये नीरस जीवन.. ©Bhavesh Thakur Rudra

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पहली दृष्टि में प्रेम हुआ तुमसे,

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