बचपन और मेला मेले के शोरगुल में, एक खामोश बाज़ार | हिंदी कविता

"बचपन और मेला मेले के शोरगुल में, एक खामोश बाज़ार देखा है., मैने उसको सजते हुए, बार बार देखा है... कभी झुमका लगाती कानो मे, कभी कंगन चढाती हाथो मे.. कभी बिंदिया सजा कर, कभी काजल लगा कर.. देखे वो भी मुझे बहाने बना कर, उसकी नजरो मे, मैने खुद को बेकरार देखा है... #nitin"

 बचपन और मेला  मेले के शोरगुल में, एक खामोश बाज़ार देखा है.,
मैने उसको सजते हुए, बार बार देखा है... 
कभी झुमका लगाती कानो मे, कभी कंगन चढाती हाथो मे.. 
कभी बिंदिया सजा कर,  कभी काजल लगा कर..
देखे वो भी मुझे बहाने बना कर, 
उसकी नजरो मे,  मैने खुद को बेकरार देखा है... 
#nitin

बचपन और मेला मेले के शोरगुल में, एक खामोश बाज़ार देखा है., मैने उसको सजते हुए, बार बार देखा है... कभी झुमका लगाती कानो मे, कभी कंगन चढाती हाथो मे.. कभी बिंदिया सजा कर, कभी काजल लगा कर.. देखे वो भी मुझे बहाने बना कर, उसकी नजरो मे, मैने खुद को बेकरार देखा है... #nitin

#mela

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