सफ़र......
ये वो सफर है जिसकी शुरआत हुई तो पता न चला की ये वो सफर है जो कभी खत्म न होगी!
सबकुछ तो है इस सफर में एहसास,जज्बातों का समंदर,विचारों कि महक और इबादत की हद तक महोबत
,अगर कुछ नहीं है तो वो ये की इसकी कोई मंजिल नही है!
बस यूँही साथ साथ चलते चलते उसे एक दिन अपने सफर पे जाना था और मुझे अपने सफर पे।
इस सफर की खुबसुरती तो देखिये ये आज भी जारी है, बस इसके साथ बितनेवाले लम्हें आज कम हो गए है!
पर आज भी वो मुझमें कहीं जिंदा है और मैं उनमें कहीं बाकी हूँ बस एक होकर चलना न कल संभव था और न आज!
कभी कभी सोचती हूँ क्या नाम दूँ इस एहसास और ऐसे सफर को तो जहन में बस एक ही नाम उभर कर सामने आता है और वो है...
.... अंतहीन सफर के हमराही....
©Rupam Mahto
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