बनते बनते बिगड़ गई है। ये उलझने न सुलझ रही है । ब | हिंदी Shayari Vide

"बनते बनते बिगड़ गई है। ये उलझने न सुलझ रही है । बिन मांगे क्या कुछ नहीं मिल रही है । जिसकी जरूरत नहीं ,वो बिन मांगे मिल रही है। जिसकी जरूरत ,वो ना मिल रही है । कहां लाकर ये जिंदगी खड़ी कर दी है। बनते बनते बिगड़ गई है ये उलझने न सुलझ रही है । बिन मांगे क्या कुछ नहीं मिल रही हैं (टैंशन, स्ट्रेस, प्रॉब्लम्स) ©Shreya Singh bhardwaj "

बनते बनते बिगड़ गई है। ये उलझने न सुलझ रही है । बिन मांगे क्या कुछ नहीं मिल रही है । जिसकी जरूरत नहीं ,वो बिन मांगे मिल रही है। जिसकी जरूरत ,वो ना मिल रही है । कहां लाकर ये जिंदगी खड़ी कर दी है। बनते बनते बिगड़ गई है ये उलझने न सुलझ रही है । बिन मांगे क्या कुछ नहीं मिल रही हैं (टैंशन, स्ट्रेस, प्रॉब्लम्स) ©Shreya Singh bhardwaj

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