बनते बनते बिगड़ गई है।
ये उलझने न सुलझ रही है ।
बिन मांगे क्या कुछ नहीं मिल रही है ।
जिसकी जरूरत नहीं ,वो बिन मांगे मिल रही है।
जिसकी जरूरत ,वो ना मिल रही है ।
कहां लाकर ये जिंदगी खड़ी कर दी है।
बनते बनते बिगड़ गई है ये उलझने न सुलझ रही है ।
बिन मांगे क्या कुछ नहीं मिल रही हैं (टैंशन, स्ट्रेस, प्रॉब्लम्स)
©Shreya Singh bhardwaj