एक शादी_शुदा स्त्री, जब किसी पुरूष से मिलती है
उसे जाने अनजाने मे अपना दोस्त बनाती है
तो वो जानती है की
न तो वो उसकी हो सकती है
और न ही वो उसका हो सकता है
वो उसे पा भी नही सकती और खोना भी नही चाहती..
फिर भी वह इस रिश्ते को वो अपने मन की चुनी डोर से बांध लेती है....
तो क्या वो इस समाज के नियमो को नही मानती?
क्या वो अपने सीमा की दहलीज को नही जानती?
जी नहीं
वो समाज के नियमो को भी मानती है
और अपने सीमा की दहलीज को भी जानती है
मगर कुछ पल के लिए वो अपनी जिम्मेदारी भूल जाना चाहती है
कुछ खट्टा... कुछ मीठा
आपस मे बांटना चाहती है
जो शायद कही और किसी के पास नही बांटा जा सकता है
वो उस शख्स से कुछ एहसास बांटना चाहती है
जो उसके मन के भीतर ही रह गए है कई सालों से
थोडा हँसना चाहती है
खिलखिलाना चाहती हैं
वो चाहती है की कोई उसे भी समझे बिन कहे
सारा दिन सबकी फिक्र करने वाली स्त्री चाहती है की कोई उसकी भी फिक्र करे...
वो बस अपने मन की बात कहना चाहती है
जो रिश्तो और जिम्मेदारी की डोर से आजाद हो
कुछ पल बिताना चाहती है
जिसमे न दूध उबलने की फिक्र हो,न राशन का जिक्र हो....न EMI की कोई तारीख हो
आज क्या बनाना है,
ना इसकी कोई तैयारी हो
बस कुछ ऐसे ही मन की दो बातें करना चाहती है
कभी उल्टी_सीधी ,बिना सर_पैर की बाते
तो कभी छोटी सी हंसीओर कुछ पल की खुशी...
बस इतना ही तो चाहती है
आज शायद हर कोई इस रिश्ते से मुक्त एक दोस्त ढूंढता है
जो जिम्मेदारी से मुक्त हो....❤️
©Durga Gautam
#Yaari