हालातों के सागर से, डुबकियां लगाकर सीखा हूं कभी ग | हिंदी कविता

"हालातों के सागर से, डुबकियां लगाकर सीखा हूं कभी गिर कर, कभी उठकर,खुद चलना सीखा हूं मैं शौर्य के कवच से, प्रतिशोध से टकराना सीखा हूं मैं अभिमान को ध्वस्त कर, सम्मान पाना सीखा हूं मैं प्रतिकूलता में भी, अनुकूलता से जीना सीखा हूं मैं तम की छाती पर, दीप्ति जलाना सीखा हूं मैं घनघोर घटाओं में भी, मैघों से टकराना सीखा हूं मैं   जहरीले सांपों के विषदन्त तोड़े हैं मैंने, विभत्स कानन में भी शोर मचाता चला हूं मैं जहां चला हूं जिधर चला हूं मैं नहीं चला मैं, गीदड़ वाली चाल कभी, सिन्हों की भांति, निडर चला हूं मैं ©vivekpurohit"

 हालातों के सागर से, डुबकियां लगाकर सीखा हूं 
कभी गिर कर, कभी उठकर,खुद चलना सीखा हूं मैं 

शौर्य के कवच से, प्रतिशोध से टकराना सीखा हूं मैं अभिमान को ध्वस्त कर, सम्मान पाना सीखा हूं मैं 

प्रतिकूलता में भी, अनुकूलता से जीना सीखा हूं मैं
 तम की छाती पर, दीप्ति जलाना सीखा हूं मैं

 घनघोर घटाओं में भी, मैघों से टकराना सीखा हूं मैं   जहरीले सांपों के विषदन्त तोड़े हैं मैंने,

 विभत्स कानन में भी शोर मचाता चला हूं मैं
 जहां चला हूं जिधर चला हूं मैं 

नहीं चला मैं, गीदड़ वाली चाल कभी, 
सिन्हों की भांति, निडर चला हूं मैं

©vivekpurohit

हालातों के सागर से, डुबकियां लगाकर सीखा हूं कभी गिर कर, कभी उठकर,खुद चलना सीखा हूं मैं शौर्य के कवच से, प्रतिशोध से टकराना सीखा हूं मैं अभिमान को ध्वस्त कर, सम्मान पाना सीखा हूं मैं प्रतिकूलता में भी, अनुकूलता से जीना सीखा हूं मैं तम की छाती पर, दीप्ति जलाना सीखा हूं मैं घनघोर घटाओं में भी, मैघों से टकराना सीखा हूं मैं   जहरीले सांपों के विषदन्त तोड़े हैं मैंने, विभत्स कानन में भी शोर मचाता चला हूं मैं जहां चला हूं जिधर चला हूं मैं नहीं चला मैं, गीदड़ वाली चाल कभी, सिन्हों की भांति, निडर चला हूं मैं ©vivekpurohit

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