ये न थी क़िस्मत हमारी, इतनी भीड़ में भी कैसे टिक ग | हिंदी Shayari

"ये न थी क़िस्मत हमारी, इतनी भीड़ में भी कैसे टिक गई मुझमे तन्हाई एक पल तुम्हे निगाहों में कैद करके देखा, वर्षों की उलझन सुलझ गई!"

 ये न थी क़िस्मत हमारी, इतनी भीड़ में भी कैसे टिक गई मुझमे तन्हाई
एक पल तुम्हे निगाहों में कैद करके देखा, वर्षों की उलझन सुलझ गई!

ये न थी क़िस्मत हमारी, इतनी भीड़ में भी कैसे टिक गई मुझमे तन्हाई एक पल तुम्हे निगाहों में कैद करके देखा, वर्षों की उलझन सुलझ गई!

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