भाई दूज का त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता | हिंदी Quotes

"भाई दूज का त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता है। हिन्दू धर्म में भाई-बहन के स्नेह प्रतीक के रूप में दो त्योहार मनाये जाते हैं एक रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।इसमें भाई–बहन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है। दूसरा त्योहार, 'भाई दूज' का होता है। इसमें बहनें अपने भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं। भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है। भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है। गोबर की मानव मूर्ति बना कर छाती पर ईंट रखकर स्त्रियां उसे मूसलों से तोड़ती हैं। स्त्रियां घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया के कांटे से दागती भी हैं। यह त्यौहार हमारे जीवन में भाई बहन के रिश्ते की उपयोगिता को दर्शाता है, जो अटूट है जो एक ज़िमेदारी का प्रतीक है । ©Ankur Kumar Pandey Lias"

 भाई दूज का त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता है। हिन्दू धर्म में भाई-बहन के स्नेह प्रतीक के रूप में दो त्योहार मनाये जाते हैं एक रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।इसमें भाई–बहन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है। दूसरा त्योहार, 'भाई दूज' का होता है। इसमें बहनें अपने भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं। भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है। भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है। गोबर की मानव मूर्ति बना कर छाती पर ईंट रखकर स्त्रियां उसे मूसलों से तोड़ती हैं। स्त्रियां घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया के कांटे से दागती भी हैं। यह त्यौहार हमारे जीवन में भाई बहन के रिश्ते की उपयोगिता को दर्शाता है, जो अटूट है जो एक ज़िमेदारी का प्रतीक है ।

©Ankur Kumar Pandey Lias

भाई दूज का त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता है। हिन्दू धर्म में भाई-बहन के स्नेह प्रतीक के रूप में दो त्योहार मनाये जाते हैं एक रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।इसमें भाई–बहन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है। दूसरा त्योहार, 'भाई दूज' का होता है। इसमें बहनें अपने भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं। भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है। भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है। गोबर की मानव मूर्ति बना कर छाती पर ईंट रखकर स्त्रियां उसे मूसलों से तोड़ती हैं। स्त्रियां घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया के कांटे से दागती भी हैं। यह त्यौहार हमारे जीवन में भाई बहन के रिश्ते की उपयोगिता को दर्शाता है, जो अटूट है जो एक ज़िमेदारी का प्रतीक है । ©Ankur Kumar Pandey Lias

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