Arz kiya hai
Tuesday, 24 January | 10:30 pm
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पायलें बाँध के बारिश की करूँ रक़्स-ए-जुनूँ
तू घटा बन के बरस और मैं सहरा हो जाऊँ
अपनी हस्ती को मिटा दूँ तिरे जैसा हो जाऊँ
इस तरह चाहूँ तुझे मैं तिरा हिस्सा हो जाऊँ
दूर तक ठहरा हुआ झील का पानी हूँ मैं
तेरी परछाईं जो पड़ जाए तो दरिया हो जाऊँ
शहर-दर-शहर मिरे इश्क़ की नौबत बाजे
मैं जहाँ जाऊँ तिरे नाम से रुस्वा हो जाऊँ
आदमी बन के बहुत मैं ने तुझे सज्दे किए
तो ख़ुदा बन के मुझे मिल मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ
इस तरह मिल कि बिछड़ने का तसव्वुर न रहे
इस तरह माँग मुझे तू कि मैं तेरा हो जाऊँ
इतना बीमार कि साँसों से धुआँ उठता है
आ तुझे देख लूँ और देख के अच्छा हो जाऊँ !!