के तेरा कोई ज़िक्र अब मेरे ख़ाबों में नहीं है तुझ | हिंदी Shayari
"के तेरा कोई ज़िक्र अब मेरे ख़ाबों में नहीं है
तुझसे किये वादे निभाना अब मेरे इरादों मे नही है
और तुम्हारे दिये गुल दस्ते का फूल मुरझा गया है
इसलिए उसकी जगह अब मेरी किताबों में नहीं है
-अर्जुन भदौरिया"
के तेरा कोई ज़िक्र अब मेरे ख़ाबों में नहीं है
तुझसे किये वादे निभाना अब मेरे इरादों मे नही है
और तुम्हारे दिये गुल दस्ते का फूल मुरझा गया है
इसलिए उसकी जगह अब मेरी किताबों में नहीं है
-अर्जुन भदौरिया