देखता हूँ खेलते बच्चों को माँ की गोद में,
सोचता हूँ मिल गया होता....
मुझको भी ऐसा ही कभी।
ज्यो निकलता संगियों संग खेलने मैं बाग में,
कान ऐंठ कर खीच लाती....
घर में मुझको वो तभी।
खीझ जाता यूँ कभी जो मैं उसकी बात पर,
वो मना लेती ही मुझको....
करके जतन अपने सभी।
गर मैं होता उदास दुनिया की इस भीड़ में,
ओढ़ लेता आँचल हर लेती....
पीर मेरी वो सभी।
बेटा कहके जो वो मुझको पुकारती,
हाज़िर कर देता चरणों में....
मैं अपना सर तभी।
कर दिए कुदरत ने मेरे सपने अधूरे,
क्योकि था अभागो में....
एक मैं भी।।
एक अभागा