एक कलम कार हूं कलाकार हूं,
कलम को बना कूंची चलाया है।
विरह,शौर्य,श्रंगार शब्दों के रंग भर,
कागज पर उन्हें सजाया है।
आज उसी कलमकार ने,
कलम का जादू चलाया है।
कलमकार महिला ने पुरुष पर ,
लिखने का बीड़ा उठाया है।
जो भाई,पति और पिता होता है,
सबकी खातिर उसने भी कुछ खोया है।
अपना सब त्यागकर घर के,
हर सदस्य की सोचता है,
हो कैसी भी परिस्थितियां,
ना वो कभी घबराया है।
मगर जब बेटी की हो विदाई,
तो छुपकर सबसे अधिक रोया है।
ना रहे गर वो खालीपन महसूस होता है,
क्यों कि वो ही पूरे घर का सरमाया है।।
स्नेह शर्मा
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