वो अनकही ख्वाहिश, जो तुम समझ जाते, तो  तुम  | हिंदी कविता

"  वो अनकही ख्वाहिश, जो तुम समझ जाते, तो  तुम  मुझे अकेले, यूँ  छोड़ कर न जाते। ख्वाहिश   थी   मेरी,  तुम्हारे   पास   बैठने  की, तुम से बातें  करने की, तुम्हें जानने समझने की, काश ये मेरी ख्वाहिश तुम भी  कभी जान जाते, तो तुम मुझे अकेला, यूँ........................... । ख्वाहिश  थी  मेरी,  तुम्हारे दिल  में  बरसने  की, तेरी धड़कन  सुनने की, तुम्हें  महसूस  करने की, काश  ये  मेरी ख्वाहिश तुम भी महसूस कर पाते, तो तुम मुझे अकेला, यूँ.............................. । ख्वाहिश  थी  मेरी,  तुम्हारे  साथ - साथ हसने की, तेरे साथ - साथ रोने की, तुम्हें  अपना  बनाने  की, काश मेरी ख्वाहिश को तुम अपनी ख्वाहिश बनाते, तो तुम मुझे अकेला, यूँ............................. ©Uma Vaishnav "

 वो अनकही ख्वाहिश, जो तुम समझ जाते, तो  तुम  मुझे अकेले, यूँ  छोड़ कर न जाते। ख्वाहिश   थी   मेरी,  तुम्हारे   पास   बैठने  की, तुम से बातें  करने की, तुम्हें जानने समझने की, काश ये मेरी ख्वाहिश तुम भी  कभी जान जाते, तो तुम मुझे अकेला, यूँ........................... । ख्वाहिश  थी  मेरी,  तुम्हारे दिल  में  बरसने  की, तेरी धड़कन  सुनने की, तुम्हें  महसूस  करने की, काश  ये  मेरी ख्वाहिश तुम भी महसूस कर पाते, तो तुम मुझे अकेला, यूँ.............................. । ख्वाहिश  थी  मेरी,  तुम्हारे  साथ - साथ हसने की, तेरे साथ - साथ रोने की, तुम्हें  अपना  बनाने  की, काश मेरी ख्वाहिश को तुम अपनी ख्वाहिश बनाते, तो तुम मुझे अकेला, यूँ............................. ©Uma Vaishnav

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