White कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे, तुम रूई सी लग | हिंदी Poetry

"White कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे, तुम रूई सी लग रही हो खिली और हल्के, गोधूली सी तेरी यादें संदल हो जैसे, तुम खो सी रही हो नए आगोश में ढल के, मेरे मन का सुरभित कस्तूरी लिए, फिर रही हिरनी सी तु चंचला मचल के, सुबह की ओस सी मेरे होठों पे ठहरी हुईं, हवा और धूप क्या लगी गिर पड़ी फिसल के, मैने कई अजनबी बुलाए थे अपने दिल के अंजुमन में, फिर तु कहां चल दी यूं बन संवर के, कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे, तुम रूई सी लग रही हो खिली और हल्के। ©Akshay Shivam"

 White कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे,
तुम रूई सी लग रही हो खिली और हल्के,
गोधूली सी तेरी यादें संदल हो जैसे,
तुम खो सी रही हो नए आगोश में ढल के,
मेरे मन का सुरभित कस्तूरी लिए,
फिर रही हिरनी सी तु चंचला मचल के,
सुबह की ओस सी मेरे होठों पे ठहरी हुईं,
हवा और धूप क्या लगी गिर पड़ी फिसल के,
मैने कई अजनबी बुलाए थे अपने दिल के अंजुमन में,
फिर तु कहां चल दी यूं बन संवर के,
कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे,
तुम रूई सी लग रही हो खिली और हल्के।

©Akshay Shivam

White कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे, तुम रूई सी लग रही हो खिली और हल्के, गोधूली सी तेरी यादें संदल हो जैसे, तुम खो सी रही हो नए आगोश में ढल के, मेरे मन का सुरभित कस्तूरी लिए, फिर रही हिरनी सी तु चंचला मचल के, सुबह की ओस सी मेरे होठों पे ठहरी हुईं, हवा और धूप क्या लगी गिर पड़ी फिसल के, मैने कई अजनबी बुलाए थे अपने दिल के अंजुमन में, फिर तु कहां चल दी यूं बन संवर के, कपास की फूनगी पर लगे दल जैसे, तुम रूई सी लग रही हो खिली और हल्के। ©Akshay Shivam

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