कृपा सिंधु
डोल रही ये जीवन नैया,
संकटमोचन कृपा बरसा देना।
मूरख हूं अज्ञानी हूं मैं,
तुम ही कोई राह दिखला देना।
नश्वर शरीर के इस मन को,
भक्ति की पतवार थमा देना।
भव सागर से हे कृपा सिंधु,
बस तुम ही पार लगा देना।।
स्नेह शर्मा
स्वरचित
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