जाने क्या क्या राज़ बयां करती ये आँखे आँखो से आँखो
"जाने क्या क्या राज़ बयां करती ये आँखे
आँखो से आँखो के जाम पिलाती ये आँखे
किनारे पर ही गहराई का एहसास दिलाती ये आँखे
चमक कुछ ऐसी ख़ुद चांद को तक बादल का पल्लू ओढ़ने पर मजबूर कर दे ये आँखे।
और नशा कुछ ऐसा के मयखाने को भी मदहोश कर दे ये आँखे।
ओम"
जाने क्या क्या राज़ बयां करती ये आँखे
आँखो से आँखो के जाम पिलाती ये आँखे
किनारे पर ही गहराई का एहसास दिलाती ये आँखे
चमक कुछ ऐसी ख़ुद चांद को तक बादल का पल्लू ओढ़ने पर मजबूर कर दे ये आँखे।
और नशा कुछ ऐसा के मयखाने को भी मदहोश कर दे ये आँखे।
ओम