मनुष्य का एक स्वभाव होता है। जब वह दया करता है तो चाहता है याचक पूरी तरह विनम्र बना रहे , अगर याचक दान लेने में कहीं भी स्वाभिमान दिखलाता है तो आदमी अपनी दानवृत्ति और दया भाव भूल कर नृशंसता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है।
~ गुनाहों का देवता
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