ढलती शाम में और क्या लिखूॅं ? बस एक मॉं थी जिससे स | हिंदी Poetry

"ढलती शाम में और क्या लिखूॅं ? बस एक मॉं थी जिससे सुबह शाम हुआ करती थी‌, जो कि अब नहीं है! मगर वह दूर रहकर भी पास है, यही दिल के किसी कोने में। ©मनीष कुमार पाटीदार"

 ढलती शाम में और क्या लिखूॅं ?
बस एक मॉं थी जिससे सुबह शाम
हुआ करती थी‌, जो कि अब नहीं है!
मगर वह दूर रहकर भी पास है,
यही दिल के किसी कोने में।

©मनीष कुमार पाटीदार

ढलती शाम में और क्या लिखूॅं ? बस एक मॉं थी जिससे सुबह शाम हुआ करती थी‌, जो कि अब नहीं है! मगर वह दूर रहकर भी पास है, यही दिल के किसी कोने में। ©मनीष कुमार पाटीदार

#moonlight

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