White दुःख का दरिया सूखता नहीं,रूकती नहीं साँसें | हिंदी Poetry

"White दुःख का दरिया सूखता नहीं,रूकती नहीं साँसें यहाँ..! क्यों रुलाया मुझे प्रभु,काँटों का देकर ये जहाँ..! जिधर जिधर दिखी ज़िन्दगी,मौत से सामना हुआ वहाँ..! लेकर मैं ख़ुद के बिखरे वज़ूद को,आख़िर जाऊँ कहाँ..! किस्से कहानियों में तुम,सम्मुख आते हो भक्तों के..! इस कलयुग में क्या,और कैसे करूँ तकलीफ बयाँ..! औरों को ख़ुश रखने के चक्कर में,सब कुछ दिया मैंने गवाँ..! सुलगती चिता चित्त की नित यूँ,ख़्वाहिशें ऱाख केवल बचा धुआँ..! कष्टमय जीवन रहा आजीवन,उजड़ता देखा खुशियों का बाग़बाँ..! कैसे जियूँ बची कुची ज़िन्दगी,कैसे हो सुखी राहत का कारवाँ..! सुकूँ के पल न मिले कभी,धुँधला नज़र आया ख़्वाबों का आसमाँ..! तरसती निग़ाहें दीदार को तुम्हारे,पुकारे तुम्हीं को ये हरपल जुबाँ..! ©SHIVA KANT(Shayar)"

 White  दुःख का दरिया सूखता नहीं,रूकती नहीं साँसें यहाँ..!
क्यों रुलाया मुझे प्रभु,काँटों का देकर ये जहाँ..!

जिधर जिधर दिखी ज़िन्दगी,मौत से सामना हुआ वहाँ..!
लेकर मैं ख़ुद के बिखरे वज़ूद को,आख़िर जाऊँ कहाँ..!

किस्से कहानियों में तुम,सम्मुख आते हो भक्तों के..!
इस कलयुग में क्या,और कैसे करूँ तकलीफ बयाँ..!

औरों को ख़ुश रखने के चक्कर में,सब कुछ दिया मैंने गवाँ..!
सुलगती चिता चित्त की नित यूँ,ख़्वाहिशें ऱाख केवल बचा धुआँ..!

कष्टमय जीवन रहा आजीवन,उजड़ता देखा खुशियों का बाग़बाँ..!
कैसे जियूँ बची कुची ज़िन्दगी,कैसे हो सुखी राहत का कारवाँ..!

सुकूँ के पल न मिले कभी,धुँधला नज़र आया ख़्वाबों का आसमाँ..!
तरसती निग़ाहें दीदार को तुम्हारे,पुकारे तुम्हीं को ये हरपल जुबाँ..!

©SHIVA KANT(Shayar)

White दुःख का दरिया सूखता नहीं,रूकती नहीं साँसें यहाँ..! क्यों रुलाया मुझे प्रभु,काँटों का देकर ये जहाँ..! जिधर जिधर दिखी ज़िन्दगी,मौत से सामना हुआ वहाँ..! लेकर मैं ख़ुद के बिखरे वज़ूद को,आख़िर जाऊँ कहाँ..! किस्से कहानियों में तुम,सम्मुख आते हो भक्तों के..! इस कलयुग में क्या,और कैसे करूँ तकलीफ बयाँ..! औरों को ख़ुश रखने के चक्कर में,सब कुछ दिया मैंने गवाँ..! सुलगती चिता चित्त की नित यूँ,ख़्वाहिशें ऱाख केवल बचा धुआँ..! कष्टमय जीवन रहा आजीवन,उजड़ता देखा खुशियों का बाग़बाँ..! कैसे जियूँ बची कुची ज़िन्दगी,कैसे हो सुखी राहत का कारवाँ..! सुकूँ के पल न मिले कभी,धुँधला नज़र आया ख़्वाबों का आसमाँ..! तरसती निग़ाहें दीदार को तुम्हारे,पुकारे तुम्हीं को ये हरपल जुबाँ..! ©SHIVA KANT(Shayar)

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