ज़िद करना अब छोड़ दिया है
या कहूं की अब ज़िद करने का मन ही नही करता है ।
वैसे भी कहते हैं कि ज़िद वही की जाती है
जहाँ उसके पूरे होने का अनुमान हो,
जहाँ पता हो उसे नकारा नहीं जाएगा,
देर से ही सही उसे पूरा करने की भरसक कोशिश की जाएगी ।
ज़िद आपको मुक्त बना देती है एवं भाव देती है
अपने आप को किसी के सामने खोल पाने का
बचपन में पिता जी से जितनी ज़िद करते रहे
टूटी फूटी ही सही वो पूरी करते गए ।
जब होश संभाला तो मायने समझ आने लगे कि
कितना मुश्किल रहा होगा उनके लिये जो मैंने मांगा उसे पूरा करने में
बाप की जूती में जब बच्चे का पैर आने लग जाये
तो समझ जाना चाहिए बच्चा बड़ा हो गया है ।
अब खुद के पैरों पर खड़ा होने पर लगता है
कितना मुश्किल है वो जूती पहन कर चलना ।
खुद पर संशय भी होता है की
क्या हम अपने बच्चों की वो सारी ज़िद पूरी कर पाएंगे
जैसे अपने पिता करते रहे बिना सवाल किए ,
बिना माथे पर शिकन लाये हुए ?
©Dr.Govind Hersal
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