सभी अंग मानव के जैसे
गायब है स्फुर्ति
देव समझ हम पूजा करते
दुनिया कहती मूर्ति
हंसती है तो रोनहीं सकती
रोकर ना मुश्काती
कभी खुशी से झूम न सकती
कभी नहीं है गाती
अपनी जगह से नहीं है हिलती
कितना कोई पुकारे
नफरत से उसको कोई देखे
या अपना दिल हारे
बेखुद फिर भी करें याचना
शायद कुछ मिल जाए
आकर गले लगा ले अपनी
जगह से वो हिल जाए
शीर्षक =मूर्ति
©Sunil Kumar Maurya Bekhud
#मूर्ति