अक्षर की पहचान ना थी शब्दों का कुछ ज्ञान ना था
तब जोड़ जोड़ अक्षर को तुमने पढ़ना सिखाया था
रेखा सीधी ना खिंचती थी अक्षर टेढ़ा बनता था
तब हाथ पकड़ कर मेरा तुमने लिखना सिखाया था
हर मुश्किल सवाल पर जब कभी मै अटका था
मेरी हर मुश्किल को तुमने ही सरल बनाया था
परिक्षम और अभ्यास ही सफलता की कुंजी है
सफलता का ये मूल मंत्र तुमने ही मुझे समझाया था
ज्ञान का संचन ही 'धीरज' सबसे अनमोल पूंजी है
अपनी ज्ञान कि गंगा से मुझ बंजर को उपजाया था
आभार प्रकट करता हूं अपने उन सभी गुरुओं का
बनकर दीपक आपने अंधकार को मिटाया था
नैतिकता की सीख मिली व्यवहार सिखाया आपने
सदाचार के पौधो का बीज हृदय में लगाया था
आभार प्रकट करता हूं अपने उन सभी गुरुओं का
बड़े स्नेह से आपने पढ़ना लिखना सिखाया था
मै भी एक शिक्षक हूं आज उसी राह पर निकला हूं
जिस राह पर चल आपने कितनो को सफल बनाया था
©Dheeraj Kumar Singh
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