हार कर के चाह अपनी छोड़ने मन जा रहा था, फूल झड़ता है | हिंदी शायरी
"हार कर के चाह अपनी छोड़ने मन जा रहा था,
फूल झड़ता है ख़िजाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।
वक़्त को कुछ वक़्त दे मन, फिर ख़िज़ां आबाद होगी,
गुल खिलेगा बागबाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।
चारण गोविन्द"
हार कर के चाह अपनी छोड़ने मन जा रहा था,
फूल झड़ता है ख़िजाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।
वक़्त को कुछ वक़्त दे मन, फिर ख़िज़ां आबाद होगी,
गुल खिलेगा बागबाँ में फिर से समझाया ज़हन ने।
चारण गोविन्द