"बचपन के दिन, टीवी की बहार
गर्मी की दोपहर, मैदानों की शाम
ठंडी हवाओं में सुकून की नींद
हाथों में बल्ला और बिना नशे के जाम
चाहे जितना भी याद कर लें वो पल
लफ्जों को उतार दे चाहे कलम के नाम
नहीं मिलता दिल को फिर भी वो चैन
जो जिया था उन लम्हों में
वो हंसी वो मुस्कान यार
उस गुजरे हुए वक्त के ही नाम
©Kunal Tanwar"