मुसाफ़िर हूं यारों , बस दो गज जमीन चाहिए रहने के

"मुसाफ़िर हूं यारों , बस दो गज जमीन चाहिए रहने के वास्ते । वर्ना रहना तो दिलो में भी आता है , और आंशिया तो हम जहानुम में भी बना लेते है।"

 मुसाफ़िर हूं यारों ,
 बस दो गज जमीन चाहिए रहने के वास्ते ।
वर्ना रहना तो दिलो में भी आता है ,
और आंशिया तो हम जहानुम में भी बना लेते है।

मुसाफ़िर हूं यारों , बस दो गज जमीन चाहिए रहने के वास्ते । वर्ना रहना तो दिलो में भी आता है , और आंशिया तो हम जहानुम में भी बना लेते है।

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