कोशिश थी कि मिल सके उनसे भी
जिनसे दिन रात बातें करते हैं
अजीब सी कशिश है गुस्से में भी
हर बार चुटकियों में मना लेती है
पागल भी है थोड़ी सी
हर बात पर गुस्सा हो जाती है
आदतों में है शायद अब वह मेरे
बात ना हो तो मुझसे लड़ लेती है
कभी सुलझी तो कभी उलझी सी लगती है
कभी लगता है बरसों से जानता हूं
तो कभी अनजानी सी लगती है
उसको शब्दों में बयां करना थोड़ा सा मुश्किल लगता है
पर सच कहूं तो मोहब्बत बेइंतहा करती है
इसलिए हर रोज मुझसे मिलने के बहाने ढूंढती है