यूं कभी-कभी चलते-चलते! लहरें लिबास बदल कर! कर छ | हिंदी कविता

"यूं कभी-कभी चलते-चलते! लहरें लिबास बदल कर! कर छू जाती हैं! हम सोचते रहते हैं! वो तुम बन कर! हमें भिगो जाती है। 🌹 ©Ranu Shukla"

 यूं कभी-कभी चलते-चलते! 
लहरें लिबास बदल कर! 
 कर छू जाती हैं!
हम सोचते रहते हैं!
वो तुम बन कर!
हमें भिगो जाती है। 🌹

©Ranu Shukla

यूं कभी-कभी चलते-चलते! लहरें लिबास बदल कर! कर छू जाती हैं! हम सोचते रहते हैं! वो तुम बन कर! हमें भिगो जाती है। 🌹 ©Ranu Shukla

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