सत्ता के मदहोशी में जब कुर्सी कलंकी हो जाती है
चौथा स्तंभ जमीर बेच धृतराष्ट्र सी अंधी हो जाती है
कौरवों के कुर्सी से पगड़ी जनता ने जब है बांध लिया
फिर क्यों रोते हैं चौराहों पर जब द्रौपदी नंगी हो जाती है
साथ पाकर दुर्योधन का प्रबल दुःशासन हो जाना
भीष्म विदुर सा न्यायतंत्र का निर्बल मौन हो जाना
है बतलाता कृष्ण कोई अब कलियुग में न आयेगा
भ्रूण में ही मर जाना "नारी" कली काल में मत आना
_आnand
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©Anand
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