जो साथ देते थे, वहीं छोड़कर हमें भागने लगे ,
हम जरा सा क्या चमके, अपने ही हमसे जलने लगे,
मेरे ज़ख्म अभी भरे भी नहीं,और वो मुझ पर हंसने लगे
दिन की बातें कहना शुरू ही किए थे,कि वो हमारी बातों से पकने लगे,
बड़ा जालिम है ये ज़माना, तुम इसकी राह मत अपनाना।
मेरे करीब बहुत विषैले मानव, मेरे आस्तीन में ही पलने लगे,
मैने खुशियों की डगर थी चुनी ए 'आदि, पर दर्द मेरे साथ- साथ चलने लगे,
मुझे पता ही न चला, ये कब मिलकर मुझे ख़त्म करने लगे।।
आदित्य
©ranu vaishnav