चल उठ बन्देया अपने अन्दर की सूरज को जगा तु,
तेरे अंदर भी लावा है इस जहाँ को दिखा तु।।
चल उठ बन्देया अपनी पहचान नई बना तु
मिट्टी के बने इस जिस्म को नूर सा सजा तु।।
लोगों की इस महफ़िल में समा नई जला तु,
हो गलत या सही पर अपने आप को अजमा तु।।
कोई रोके या टोके पर कभी भी ना डगमगा तु,
आये राह पे कितने काटे पर इनसे ना घबरा तु।।
मिलेंगे कई पर अपनी दास्तां किसी को ना सुना तु,
हो कितनो सुंदर लेकिन इस चकाचौंध में स्वयं को ना डुबा तु।।
हम तो ये भी कहते है दुनिया की इस फालतू दस्तूर में ख़ुद को ना उलझा तु,
ये चट्टान भी क्या बिगाड़ेगा तेरा , चीरकर पहाड़ को कुछ चमत्कार सा कर जा तु।।
आसमां पे चमकते चाँद को भी धरती में ला तु,
उठ आगे बढ़ते जा तु
बस आगे बढ़ते जा तु!!
बस आगे बढ़ते जा तु!!