मेरे घर के आंगन की, दिव्य रोशनी ही तुम हो, मेरे मन | हिंदी कविता

"मेरे घर के आंगन की, दिव्य रोशनी ही तुम हो, मेरे मन के मानस की, शान्ति शालिनी ही तुम हो।। उपवन के सारे फूलों से, तेरी खुशबू है प्यारी, मेरे उपवन के फूलों की, मधुर मालिनि ही तुम हो।। ©सत्यम त्रिपाठी"

 मेरे घर के आंगन की, दिव्य रोशनी ही तुम हो,
मेरे मन के मानस की, शान्ति शालिनी ही तुम हो।।
उपवन के सारे फूलों से, तेरी खुशबू है प्यारी,
मेरे उपवन के फूलों की, मधुर मालिनि ही तुम हो।।

©सत्यम त्रिपाठी

मेरे घर के आंगन की, दिव्य रोशनी ही तुम हो, मेरे मन के मानस की, शान्ति शालिनी ही तुम हो।। उपवन के सारे फूलों से, तेरी खुशबू है प्यारी, मेरे उपवन के फूलों की, मधुर मालिनि ही तुम हो।। ©सत्यम त्रिपाठी

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