कुछ नहीं है जीवन में फिर किसलिए मैं जीता हूं
बेमतलब के घाव लेकर खुद ही उसको सिता हूं।
बना निरर्थक जीवन यह, एक अर्थ पाना चाहता हूं
अपने बनाए जाल से अब पार पाना चाहता हूं।
न रास्ता है न रोशनी है एक अंत पर मैं रहता हूं
इस अंत से उखड़ कहीं एक शुरुआत नई चाहता हूं।
इस पहचान को कहीं छोड़कर कुछ और होना चाहता हूं
कुछ और कहना चाहता हूं, नई धार बहना चाहता हूं।
नई पौध के किसी रूप में मैं नई शिखाएं चाहता हूं
मैं नया सवेरा चाहता हूं मैं रोशन अंधेरा चाहता हूं।
हूं थक चुका इस कुढ़ से नई उमंग कोई चाहता हूं
इस बंजर मनभूमि में नई तरंग कोई चाहता हूं।
इस अंत से फिर एक नई श्रृष्टि सुमंगल चाहता हूं
मैं डाह के इस जीवन को अब जीवन नया चाहता हूं।
©Nitin
#जीवन_नया
#हिंदी #hindi_poetry #poem