जिनको हमने अपने हाथों की लकीर समझा
वो हाथों से मेरे रेत सा फिसलता रह गया
वो करती रही हमसे खिलवाड़ मोहब्बत की
मैं सदगी पे उनके मरता रह गया
वो निभाती रही गैरो से यारियां
मैं यारो को गैर बनाता रह गया
मैं करता रहा एतवार उन पे उमर भर
मैं उमर भर दिल पे चोट खाता रह गया
और अंजाम तो मुझे पता था अपनी मोहब्बत का
फिर भी मैं मोहब्बत से मोहब्बत निभाता रह गया
©Devil
#जिनको हमने अपने हाथों की लकीर समझा
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