कोयल मीठी - सी कुहू करती आई चीर के रात्रि के अंधेर | हिंदी Shayari

"कोयल मीठी - सी कुहू करती आई चीर के रात्रि के अंधेरे को मन में मीठी - सी उमंग संग लाई प्रात: वंदन करती हुई गीत गाती चली आई। आशा की किरण जगाने चली आई राग - विहाग की तान उठाकर देह को प्रकाशमान करके वर्ण - भेद का फ़र्क़ मिटाने चली आई। सुरीली आवाज़ से लय बनाने चली आई गीत गा - गाकर मन लुभाने भोर को सकारात्मकता से गुंजाएमान करने चली आई। दूसरों के सुरों से होड़ लगाती हुई इठहलाने और इतराने चली आई। ©@happiness"

 कोयल मीठी - सी कुहू करती आई
चीर के रात्रि के अंधेरे को
मन में मीठी - सी उमंग संग लाई
प्रात: वंदन करती हुई गीत गाती चली आई। 
आशा की किरण जगाने चली आई
राग - विहाग की तान उठाकर
देह को प्रकाशमान करके
वर्ण - भेद का फ़र्क़ मिटाने चली आई। 
सुरीली आवाज़ से लय बनाने चली आई
गीत गा - गाकर मन लुभाने
भोर को सकारात्मकता से
गुंजाएमान करने चली आई। 
दूसरों के सुरों से होड़ लगाती हुई
इठहलाने और इतराने चली आई।

©@happiness

कोयल मीठी - सी कुहू करती आई चीर के रात्रि के अंधेरे को मन में मीठी - सी उमंग संग लाई प्रात: वंदन करती हुई गीत गाती चली आई। आशा की किरण जगाने चली आई राग - विहाग की तान उठाकर देह को प्रकाशमान करके वर्ण - भेद का फ़र्क़ मिटाने चली आई। सुरीली आवाज़ से लय बनाने चली आई गीत गा - गाकर मन लुभाने भोर को सकारात्मकता से गुंजाएमान करने चली आई। दूसरों के सुरों से होड़ लगाती हुई इठहलाने और इतराने चली आई। ©@happiness

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