White जब डर के आंगन में मेरी इच्छाऐं बली हुई, तब | हिंदी विचार

"White जब डर के आंगन में मेरी इच्छाऐं बली हुई, तब बनीं हूं मैं संस्कारो कि दहलीज । थी कोयल पर मैं , गा नहीं सकती थी । थी चिड़िया पर मैं,चहचहा नहीं सकती थी ।। थी आंगन की शोभा ,मैं मूक पेड़ों की तरह । आशा को बदलते देखा गुनहगारों की तरहा।। आह नहीं भर सकती ,चाहे उठे कोई टीस । तब छुई है मैंने संस्कारो की दहलीज ।। मान और सम्मान के, पाटों में जब पिसी। और समझ ईश्वर की खुशी, बना लिया नसीब ।। कभी मिला पगड़ी का डर ,तो कभी था इज्जत का रोना । कभी लाज शरम को अपना बना लिया था गहना ‌।। कोमल मन के भावों की जब कलियां बे-घर हुई । तब छुई है मैंने संस्कारों की दहलीज ।। ©नेहा तोमर"

 White जब डर के आंगन में मेरी इच्छाऐं बली हुई,
तब  बनीं  हूं  मैं  संस्कारो  कि  दहलीज ।

थी   कोयल  पर  मैं , गा  नहीं  सकती  थी ।
थी चिड़िया पर मैं,चहचहा नहीं सकती थी ।।
थी आंगन  की शोभा ,मैं  मूक पेड़ों की तरह ।
आशा को बदलते देखा गुनहगारों की तरहा।।
आह  नहीं भर  सकती ,चाहे उठे कोई टीस ।
तब  छुई है  मैंने  संस्कारो  की  दहलीज ।।


मान  और  सम्मान  के, पाटों में  जब  पिसी।
और समझ ईश्वर की खुशी, बना लिया नसीब ।।
कभी मिला पगड़ी का डर ,तो कभी था इज्जत का रोना ।
कभी लाज शरम को अपना बना लिया था गहना ‌।।
कोमल मन के भावों की जब कलियां बे-घर हुई ।
तब   छुई   है  मैंने   संस्कारों   की   दहलीज ।।

©नेहा तोमर

White जब डर के आंगन में मेरी इच्छाऐं बली हुई, तब बनीं हूं मैं संस्कारो कि दहलीज । थी कोयल पर मैं , गा नहीं सकती थी । थी चिड़िया पर मैं,चहचहा नहीं सकती थी ।। थी आंगन की शोभा ,मैं मूक पेड़ों की तरह । आशा को बदलते देखा गुनहगारों की तरहा।। आह नहीं भर सकती ,चाहे उठे कोई टीस । तब छुई है मैंने संस्कारो की दहलीज ।। मान और सम्मान के, पाटों में जब पिसी। और समझ ईश्वर की खुशी, बना लिया नसीब ।। कभी मिला पगड़ी का डर ,तो कभी था इज्जत का रोना । कभी लाज शरम को अपना बना लिया था गहना ‌।। कोमल मन के भावों की जब कलियां बे-घर हुई । तब छुई है मैंने संस्कारों की दहलीज ।। ©नेहा तोमर

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