ये बेवक़्त की बाते, अब गुनाह बन रही है,
जिंदगी जो दवा थी, अब ज़हर बन रही है।
दो लफ्ज़ थे जो हुक़ूमत के, वो जंजीर बन रही है,
दोस्ती जो जान थी, अब बेजान बन रही है।
कहते हुए कृष्णा कौनसी गलती तुझे अंजान लग रही है,
ये जिंदगी है गिरगिटों भरी, फिर ना जाने क्यों जिंदगी भी तुझे बदरंग लग रही है।
©Krishna Soni
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