अब उसकी यादों के संदूक को कहीं दुर फेकना हैं, बस | हिंदी Shayari

"अब उसकी यादों के संदूक को कहीं दुर फेकना हैं, बस आखरी दफा उस शख़्स को एक नजर देखना है ये मत सोचो थक गई मैं तुम्हसे मुहोब्बत कर के क्या करू मजबूरी है , अब इस बेजान जिस्म को चिता पर रखाना हैं... . ©VrushVP1919"

 अब उसकी यादों के संदूक को कहीं दुर फेकना हैं, 
बस आखरी दफा उस शख़्स को एक नजर देखना है
ये मत सोचो थक गई मैं तुम्हसे मुहोब्बत कर के
क्या करू मजबूरी है , 
अब इस बेजान जिस्म को चिता पर रखाना हैं...


















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©VrushVP1919

अब उसकी यादों के संदूक को कहीं दुर फेकना हैं, बस आखरी दफा उस शख़्स को एक नजर देखना है ये मत सोचो थक गई मैं तुम्हसे मुहोब्बत कर के क्या करू मजबूरी है , अब इस बेजान जिस्म को चिता पर रखाना हैं... . ©VrushVP1919

#outofsight

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