White कैसी पेशक़श है ज़िंदगी तेरी तुझमें ख़ामियाँ | हिंदी शायरी

"White कैसी पेशक़श है ज़िंदगी तेरी तुझमें ख़ामियाँ बहुत है कितनी संवार लूँ बता मुझे दिखती कमियाँ बहुत है ता-उम्र तुम्हें गुज़ार कर आज़ ख़ाली रह गया हूँ क्यों? चंद लम्हें इशरतों के चाहीए थे देखा तो तन्हाईयाँ बहुत है फ़िर भी चाहत इतनी थी रखी किसी रोज़ ख़ुदी से मिलूँगा अभी देखता हूँ जब भी मैं मुझे मिली जुदाईयाँ बहुत है ©विशाल पांढरे"

 White कैसी पेशक़श है ज़िंदगी तेरी
तुझमें ख़ामियाँ बहुत है
कितनी संवार लूँ बता मुझे
दिखती कमियाँ बहुत है

ता-उम्र तुम्हें गुज़ार कर
आज़ ख़ाली रह गया हूँ क्यों?
चंद लम्हें इशरतों के चाहीए थे
देखा तो तन्हाईयाँ बहुत है

फ़िर भी चाहत इतनी थी रखी
किसी रोज़ ख़ुदी से मिलूँगा
अभी देखता हूँ जब भी मैं
मुझे मिली जुदाईयाँ बहुत है

©विशाल पांढरे

White कैसी पेशक़श है ज़िंदगी तेरी तुझमें ख़ामियाँ बहुत है कितनी संवार लूँ बता मुझे दिखती कमियाँ बहुत है ता-उम्र तुम्हें गुज़ार कर आज़ ख़ाली रह गया हूँ क्यों? चंद लम्हें इशरतों के चाहीए थे देखा तो तन्हाईयाँ बहुत है फ़िर भी चाहत इतनी थी रखी किसी रोज़ ख़ुदी से मिलूँगा अभी देखता हूँ जब भी मैं मुझे मिली जुदाईयाँ बहुत है ©विशाल पांढरे

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