White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं | हिंदी कविता

"White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं। बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं। जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे। सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।। कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती। कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति। हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं। निर्भय चौहान ©निर्भय निरपुरिया"

 White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं।
बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं।

जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे।
सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।।

कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती।
कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति।
हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं।

निर्भय चौहान

©निर्भय निरपुरिया

White कितने टुकड़ों में खुद को बांट के हम बैठे हैं। बिना मतलब ही मन को डांट के हम बैठे हैं। जिंदगी की नदी में हम पत्थर लुढ़कते पत्थर थे। सारी दुनिया से खुद को छांट के हम बैठे है।। कोई हीरा कोई पन्ना कोई मूंगा कोई मोती। कोई सोना कोई चांदी कोई दीपक कोई ज्योति। हैं सारे टाट के पैबंद जिसे बांट के हम बैठे हैं। निर्भय चौहान ©निर्भय निरपुरिया

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