White पल्लव की डायरी दायरे से बहार निकल लोग गुस्ता | हिंदी कविता

"White पल्लव की डायरी दायरे से बहार निकल लोग गुस्ताखी कर रहे है तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी हरण सुख शांति का कर रहे है सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है मगर आचरणों की बानगी से बंधा है धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग दंश और दहशत का जहर उगल रहे है सभ्यताओं को लांघ, निराशा चहुँ और परोस रहे है जंग जनता से कर, तख्त ताज कलंकित कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव""

 White पल्लव की डायरी
दायरे से बहार निकल
लोग गुस्ताखी कर रहे है
तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी
हरण सुख शांति का कर रहे है
सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है
मगर आचरणों की बानगी से बंधा   है
धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग
दंश और दहशत का जहर उगल रहे है
सभ्यताओं को लांघ,
 निराशा चहुँ और परोस रहे है
जंग जनता से कर,
तख्त ताज कलंकित कर रहे है
                                               प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

White पल्लव की डायरी दायरे से बहार निकल लोग गुस्ताखी कर रहे है तृष्णा कभी,कम हुयी है कभी हरण सुख शांति का कर रहे है सामने वाला भी किरदार,हौसले रखता है मगर आचरणों की बानगी से बंधा है धूर्ततापूर्ण उतर आये है सियासत में लोग दंश और दहशत का जहर उगल रहे है सभ्यताओं को लांघ, निराशा चहुँ और परोस रहे है जंग जनता से कर, तख्त ताज कलंकित कर रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

#good_night दायरे से बहार निकल,लोग गुस्ताखी कर रहे है
#nojotohindi

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