कुछ खास बदलता नहीं नए साल पर नया मेरे लिए तारीख़ क | हिंदी Life

"कुछ खास बदलता नहीं नए साल पर नया मेरे लिए तारीख़ के आलावा, इसलिए थोड़ा सा मैं ख़ुद को ही स्थिति के साथ बदल लेती हूं। कोई गिरने से संभाले मुझे ये संवेदना भी रास नहीं आती मुझे, इसलिए गिर के पड़ी रहती हूं कुछ देर जब समय ज़ख्म पर मरहम लगा देता है तो ख़ुद ही संभल लेती हूं। हर बार जिंदगी नए नए धुंध के बीच भटका देती है, मै आंखों का दर्द होंठों से छुपा कर हर बार उसके गुरूर को तोड़ देती हूं। .......satyaprabha.💕...my life ✍"

 कुछ खास बदलता नहीं नए साल पर नया मेरे लिए तारीख़ के आलावा,
इसलिए थोड़ा सा मैं ख़ुद को ही स्थिति के साथ बदल लेती हूं।
कोई गिरने से संभाले मुझे ये संवेदना भी रास नहीं आती मुझे,
इसलिए गिर के पड़ी रहती हूं कुछ देर जब समय ज़ख्म पर 
मरहम लगा देता है तो ख़ुद ही संभल लेती हूं।
हर बार जिंदगी नए नए धुंध के बीच भटका देती है,
मै आंखों का दर्द होंठों से छुपा कर हर बार उसके गुरूर को तोड़ देती हूं।
.......satyaprabha.💕...my life ✍

कुछ खास बदलता नहीं नए साल पर नया मेरे लिए तारीख़ के आलावा, इसलिए थोड़ा सा मैं ख़ुद को ही स्थिति के साथ बदल लेती हूं। कोई गिरने से संभाले मुझे ये संवेदना भी रास नहीं आती मुझे, इसलिए गिर के पड़ी रहती हूं कुछ देर जब समय ज़ख्म पर मरहम लगा देता है तो ख़ुद ही संभल लेती हूं। हर बार जिंदगी नए नए धुंध के बीच भटका देती है, मै आंखों का दर्द होंठों से छुपा कर हर बार उसके गुरूर को तोड़ देती हूं। .......satyaprabha.💕...my life ✍

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कुछ खास बदलता नहीं नए साल पर नया मेरे लिए तारीख़ के आलावा,
इसलिए थोड़ा सा मैं ख़ुद को ही स्थिति के साथ बदल लेती हूं।
कोई गिरने से संभाले मुझे ये संवेदना भी रास नहीं आती मुझे,
इसलिए गिर के पड़ी रहती हूं कुछ देर जब समय ज़ख्म पर
मरहम लगा देता है तो ख़ुद ही संभल लेती हूं।
हर बार जिंदगी नए नए धुंध के बीच भटका देती है,
मै आंखों का दर्द होंठों से छुपा कर हर बार उसके गुरूर को तोड़ देती हूं।

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