कैसी ये मजबूरी है, चाहकर भी मैं बात नहीं करता हूं | हिंदी शायरी

"कैसी ये मजबूरी है, चाहकर भी मैं बात नहीं करता हूं ! कभी msg लिखता हुं तो कभी फिर से delete करता हूं ! नहीं पता खुद को फिर भी तेरे लिखे अल्फाजों का मैं बेसबरी से इंतज़ार करता हूं !! ___ ©kumar surendra"

 कैसी ये मजबूरी है,
 चाहकर भी मैं बात नहीं करता हूं !
कभी msg लिखता हुं तो कभी फिर से delete करता हूं !
नहीं पता खुद को फिर भी तेरे लिखे अल्फाजों का मैं बेसबरी से इंतज़ार करता हूं !!
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©kumar surendra

कैसी ये मजबूरी है, चाहकर भी मैं बात नहीं करता हूं ! कभी msg लिखता हुं तो कभी फिर से delete करता हूं ! नहीं पता खुद को फिर भी तेरे लिखे अल्फाजों का मैं बेसबरी से इंतज़ार करता हूं !! ___ ©kumar surendra

😇😇

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