शीर्षक - माँ
हे माँ! तुम निर्मल-कोमल हो, इसका तात्पर्य नहीं, अबला।
है सहन-शक्ति तुझमें इतना, नवजीवन करती सृजन देख!
माँ! तुम मेरी श्रद्धा हो! हो त्याग सरलता की मूरत,
हे जननी! हम सब तेरे ऋणी, करती न्योछावर अंग देख!
कैसे निर्धारित करें कोई, हो 'मातृ दिवस' बस क्यों एक दिन?
मेरे तो प्रतिदिन तेरे माँ, मुझ पर वारे हर रंग देख!
ममता के आँचल से हे माँ! इस जग से हमें बचाते हो,
माँ बना रहे आशीष तेरा, सर्वस्व समर्पित चरण देख!
हमने तुझको प्रतिदिन देखा, जीवन की चक्की में पिसते!
बस एक दिन तुझे समर्पित हो, क्यों समझे ना जन मन देख!
माँ तुझ पर वारूँ हर एक पल, जब तक चलती है श्वास मेरी!
हे माँ मैं तुझसे अलग नहीं, तेरी प्रतिछाया है तन-मन देख!
हे माँ तुम पर मैं लिख दूँ क्या, रचना तुमने तो मेरी की!
हर नारी में तुम विद्यमान, इस रचनाकार का संग देख!
©संवेदिता "सायबा"
शीर्षक - माँ
हे माँ! तुम निर्मल-कोमल हो,
इसका तात्पर्य नहीं, अबला।
है सहन-शक्ति तुझमें इतना,
नवजीवन करती सृजन देख!
माँ! तुम मेरी श्रद्धा हो!